जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध

गुरु का महत्व वर्तमान समय में ही नहीं बल्कि पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है। गुरु को हमेशा भगवान का दर्जा दिया जाता है।

हमें अपने माता-पिता के बाद जो कुछ भी सिखाया जाता है, वह सब गुरु की ही देन होती है। गुरु ही हमें सच्चाई और अच्छाई के मार्ग को बताते हैं और सही राह पर लाते है।

Essay-On-Importance-Of-Guru-In-Hindi

आज के इस निबंध के माध्यम से गुरु के महत्व पर विशेष रूप से चर्चा करेंगे और गुरु के महत्व पर निबंध भी जानेंगे।

गुरु का दर्जा हमारे भारत में भगवान से भी ऊंचा माना जाता है और जीवन में गुरु के बिना शिष्यों का कोई भी कार्य नहीं हो पाता। हर कार्य के लिए हम सभी लोगों को गुरु की इच्छा जानी चाहिए।

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गुरु का महत्व निबंध 250 शब्दों में (Guru ka Mahatva Essay in Hindi)

गुरु का मानव के जीवन में सबसे बड़ा महत्व होता है। माता-पिता पहले गुरु होते हैं और माता-पिता के बाद जो दर्जा गुरु को दिया जाता है, वह सर्वोपरि है।

गुरु के सामने स्वयं देवता भी अपना सर झुकाते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरुओं का विशेष महत्व रहा है और मनुष्यों के लिए गुरु का दर्जा सर्वोपरि होता है।

गुरु हमें सही राह चुनने में सहायता करते हैं और गुरु हम सभी लोगों को सफलता के मार्ग पर अग्रसर करते हैं।

सभी शिष्यों के लिए एक गुरु चिराग की तरह होते हैं, जो शिष्यों के जीवन को और रोशनी से भर देते हैं। मुख्य रूप से विद्यार्थी जीवन अर्थात शिष्यों के लिए गुरु की भूमिका सबसे ज्यादा अहम है।

गुरु शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से हुई है गु और रू। यदि इसके शाब्दिक अर्थ को देखें तो गू का अर्थ अंधकार और रू का अर्थ उजाला होता है। अर्थात गुरु शिष्यों के जीवन में अंधकार को दूर कर देते हैं और उनके जीवन को उजाले से भर देते हैं।

गुरु अपने सभी शिष्यों के अंधकार रुपी जीवन को प्रकाश की ओर ले जाते हैं और उन्हें सच का मार्ग दिखाते हैं।

गुरु अपने सभी विद्यार्थियों को हर एक तरह से अलग-अलग विषयों से संबंधित जानकारियां प्रदान करते हैं, जो उनके जीवन को हर एक पड़ाव पर सुरक्षित करती है।

गुरु हमेशा अपने शिष्यों को अनुशासित, विनम्र और बड़ों का सम्मान करना सिखाते हैं।

हर एक व्यक्ति के जीवन में गुरु की एक अहम भूमिका होती है और हर एक व्यक्ति गुरु के प्रति अपने आस्था और विश्वास के साथ अपने अपने सम्मान को प्रकट करते हैं।

गुरु का मुख्य उद्देश्य अपने विद्यार्थियों को सफलता के मार्ग पर ले जाना होता है और उन्हें अच्छा ज्ञान के सागर से अवगत कराना होता है।

गुरु अपने हर एक शिष्य को साहित्य, कला और जीवन के हर एक पड़ाव को समझने की अहम शिक्षा प्रदान करते हैं।

गुरु का स्थान पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है और स्वयं भगवान भी गुरु को पूजते हैं।

गुरु को सम्मान देने के लिए हमारे भारत में विशेष रुप से गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है और इस दिन गुरु को याद कर के मंदिर और घरों में उनकी पूजा भी की जाती है।

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जीवन में गुरु का महत्व 850 शब्दों में निबंध (Guru ka Mahatva Essay in Hindi)

हमें अपने माता-पिता के बाद जो कुछ भी सिखाया जाता है वह सब गुरु की ही देन होती है। गुरु ही हमें सच्चाई और अच्छाई के मार्ग को बताते हैं और सही राह पर लाते है।

गुरु शब्द की उत्पत्ति

गुरु शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों को मिलाकर हुई है, जो कि गु और रु है। गु शब्द का अर्थ अंधकार होता है और रु शब्द का अर्थ रोशनी होता है, अर्थात गुरु शब्द का अर्थ ही अंधकार से निकालकर ज्ञान के तरफ लेकर जाना होता है।

जिंदगी में मनुष्य को अंधकार रूपी परेशानियों से गुरु ज्ञान के उस प्रकाश की ओर ले कर जाते हैं, जो शिष्यों के लिए बहुत ही अहम होता है।

हम सभी लोगों के पहले गुरु हमारे माता-पिता ही होते हैं, परंतु यह हमें संस्कारित शिक्षा प्रदान करते हैं और दुनिया से लड़ने और दुनिया को समझने की शिक्षा हमें हमारे विद्यालय में शिक्षक प्रदान करते हैं।

बिना गुरु के दुनिया का क्या होगा

यदि गुरु नहीं होंगे, तो लोग शिक्षित नहीं हो पाएंगे और बिना शिक्षा के लोग अंधकार में भटकेंगे।

जैसे अंधेरा होने के बाद हम सभी लोग सामग्रियों को सिर्फ और सिर्फ टटोलते रहते हैं, ठीक उसी प्रकार बिना गुरु के जिंदगी में अंधकार छा जाएगा और हम ऐसे ही भटकते रहेंगे और दुनिया का कोई भी व्यक्ति काम नहीं आएगा।

यदि किसी भी सदस्य को उसके जीवन में गुरु नहीं मिला तो वह शिष्य अपने जीवन को दुखों से ही जिएगा और जीवन को सही रास्ते पर लाने के लिए गुरु की तलाश करते रहेगा।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु पूर्णिमा एक बहुत ही पावन दिवस है, क्योंकि आज के दिन गुरु को याद करके उनकी पूजा की जाती है।

यह एक ऐसा दिन होता है, जिस दिन सभी शिष्य अपने अपने गुरुओं को याद करते हैं और उनसे मिलकर अपने भविष्य के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन हर एक घर में गुरु नानक देव की पूजा की जाती है, क्योंकि गुरु नानक देव जी नहीं शिक्षा को उजागर किया था।

इस दिन अपने भविष्य को बनाने के लिए लोग गुरु कोई आशीर्वाद के साथ साथ दान धर्म का काम भी करते हैं, जिससे वह पुण्य कमाते हैं।

गुरु को अपने अच्छे से सफल होता है गर्व

जब शिष्य गुरु से शिक्षा प्राप्त करके अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं, तो इसका पूरा श्रेय गुरु को मिलता है और शिष्य अपने गुरु को खुद का गर्व मानते हैं।

लोग अपनी सफलता के पीछे का कारण अपने गुरु और माता-पिता को बताते हैं। ऐसे में यदि किसी गुरु का शिष्य अच्छे तरीके से सफल हो जाता है तो गुरु को भी अपने और शिष्य पर गर्व महसूस होता है।

जिंदगी में जो व्यक्ति कुछ भी करता है या कुछ भी बनता है तो वह अपने इस उपलब्धि का श्रेय अपने गुरु और माता-पिता के सपोर्ट को देता है।

गुरु हमेशा अपने शिष्यों पर गर्व महसूस करते हैं और उन्हें सद मार्ग के रास्ते पर लाते हैं।

अपने गुरु को सबसे बड़ा गुरु दक्षिणा किसने दिया था?

हमारे भारतीय इतिहास में बहुत सी ऐसी घटनाएं हैं, जहां पर शिष्यों ने अपने अपने गुरुओं के लिए विशेष बलिदान दिया है और इन सभी कहानियों में सबसे ऊपर बलिदान की कहानी महाभारत में एकलव्य को दिया जाता है।

एकलव्य ने अपने गुरु के लिए अपनी अंगुली काट दी थी और उन्हें अपनी अंगुली दक्षिणा के रूप में दी थी।

एकलव्य एक ऐसा महारथी था, जिसने सिर्फ गुरु की प्रतिमा से गुरु के सभी कलाए सीख लिया था और बहुत ही धुरंधर धनुर्विद्या का ज्ञाता हो गया था।

गुरु द्रोणाचार्य को ऐसा डर था कि कहीं उनका अर्जुन को दिया गया वरदान गलत न साबित हो जाए।

गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को ऐसा वरदान दिया था कि तुम इस धरती के सबसे ज्ञानी धनुर्धर बनोगे, परंतु एकलव्य की कला को देखकर द्रोणाचार्य जी को यह डर सताने लगा था।

इसी कारण से गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनके दाएं हाथ का अंगूठा दक्षिणा के रूप में मांग लिया।

एकलव्य अपने गुरु को निराश नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे तलवार निकालकर अपने अंगूठे को काट दिया और गुरु द्रोणाचार्य को दक्षिणा के रूप में दे दिया।

एकलव्य के इस बलिदान को गुरु के लिए किया गया सबसे बड़ा बलिदान माना जाता है।

गुरु सभी मानव के लिए सर्वोपरि है और हमें अपने गुरु के सेवा के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करना चाहिए।

जहां तक हो सके हम सभी लोगों को अपने गुरु की सेवा के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए।

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Comment (1).

बहुत ही अच्छा निबंध है गुरूजी के उपर बहुत बहुत धन्यवाद । जय गुरू देव। सतसत नमन गुरू को।

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गुरु का महत्व पर निबंध

गुरु का महत्व पर निबंध जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध.

गुरु का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व होता है। माता -पिता हमारे प्रथम शिक्षक होते है। गुरु का दर्जा माता -पिता से भी ऊंचा होता है। उदहारण स्वरुप अगर हम अँधेरे कमरे में बंद हो जाए, और अन्धकार में ही हम किसी चीज़ को ढूंढ रहे है लेकिन हम विवश है और उस चीज़ को ढूंढ नहीं पा रहे है, ऐसे में गुरु के दिशा निर्देश के बैगर हम उस चीज़ को ढूंढने में असमर्थ है। गुरु जी जैसे ही हमें बताते है और वह चीज़ हमे तुरंत प्राप्त हो जाती है। गुरु के बैगर हमारी ज़िन्दगी दुःख से भर जायेगी और हम जीवन में विभिन्न चीज़ों को सीखने में नाकामयाब होंगे। गुरु हमें अपने जिन्दगी में सही दिशा दिखाते है। वह हमारे जीवन में पथ प्रदर्शक के रूप में कार्य करते है।

भारत में प्राचीन काल से ही गुरु का विशेष महत्व है। मनुष्य के लिए गुरु सबसे ऊपर होता है। गुरु हमे सही मार्ग चुनने में सहायता करते है। गुरु शब्द का निर्माण दो शब्दों को मिलाकर होता है। गुरु में गु का अर्थ है अन्धकार और रु का अर्थ है रोशनी। गुरु हमे अंधकारमय जीवन से प्रकाश की ओर ले जाते है। गुरु एक दिये की तरह होते है, जो शिष्यों के जीवन को रोशन कर देते है। खासकर विद्यार्थी जीवन में गुरु की अहम भूमिका होती है। गुरु विद्यार्थी को हर प्रकार के विषयो से संबंधी जानकारी देते है ओर जीवन के अलग अलग पड़ाव में उन्हें मुश्किलों से लड़ना सीखाते है। विद्यार्थियों को अनुशासित होना, विनम्र, बड़ो का सम्मान करना सीखाते है।

विद्यालय में विद्यार्थी अपने जिन्दगी में सही और गलत का फर्क नहीं कर पाते है। गुरु जी विद्यार्थी को यह अंतर करना सीखाते है, ताकि वे जिन्दगी के कठिनाईयों में सही राह को चुन सके। विद्यार्थी अपने जीवन में हर कठिन परिस्थिति का सामना डट कर और निडर होकर कर सके। गुरु की असीमित शिक्षा और आशीर्वाद से विद्यार्थी जिंदगी के विषम परिस्थितियों को पार कर लेते है।

गुरु की भूमिका सबके जीवन में होती है। हर व्यक्ति गुरु के प्रति आस्था, विश्वास और सम्मान रखता है और छोटे बड़े फैसले लेने से पूर्व अपने गुरु की राय जानना चाहता है। हर व्यक्ति को अलग अलग चीज़ों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। उदाहरण स्वरुप अगर आप गाड़ी चलना सीखना चाहते है, उसके लिए आपको ड्राइविंग गुरु की आवश्यकता होती है, अगर आप संगीत सीखना चाहते है, उसको सीखने के लिए संगीत गुरु की ज़रूरत होती है। अगर हम जीवन में इस प्रकार के कलाओ को सम्पूर्ण रूप से  सीखना चाहते है, तो आपको गुरु के पास जाना होता है।

गुरु का प्रमुख उद्देश्य है, विद्यार्थी  को सफल बनाना और उन्हें भरपूर ज्ञान प्राप्त करवाना। प्राचीन काल में गुरु शिष्यों को आश्रम में साहित्य, कला और जीवन के फलसफे इत्यादि पर ज्ञान प्रदान करते थे, लेकिन अब वर्त्तमान में गुरु अपने शिष्यों को कॉलेज, स्कूल इत्यादि शिक्षा संस्थानों में शिक्षा प्रदान करते है। शिष्य हमेशा गुरु के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते थे। गुरु हमेशा शिष्य का भला चाहते है और वे अपने शिष्यों को सफलता की चोटी पर विराजमान देखना चाहते है।

गुरु को सम्मान देने लिए गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है।   इस दिन घरो और मंदिरो में विशेष पूजा पाठ होती है। कई स्थानों में जहाँ गुरु अपने शिष्यों की शिक्षा में सम्पूर्ण सहयोग देते है, उनका गुरु पूर्णिमा के दिन आदर सत्कार किया जाता है। इस दिन गुरु दक्षिणा के रूप में दान किया जाता है और इससे शिष्यों को पुण्य प्राप्ति होती है।

सच्चा गुरु भक्त अपने सभी लक्ष्यों को पूर्ण करने में सफल होता है। एक बच्चे की प्रथम गुरु उनकी माँ होती है जो उन्हें बोलना, चलना, लिखना पढ़ना सिखाती है। हमेशा से हिन्दू धर्म में गुरु का विशेष महत्व रहा है। संत कबीर ने भी गुरु भक्ति के कई पदों की रचना की थी। एक गुरु हमेशा अपने शिष्य को अपने आप से सफल और श्रेष्ठ देखना चाहता है। यह हमारे गुरु का बड़प्पन है। गुरु सिर्फ शिक्षक के रूप में ही  नहीं बल्कि विभिन्न रूपों में हो सकते है जैसे माता, पिता, भाई, बहन, दोस्त। हम विभिन्न लोगो से ज़िन्दगी में सीख सकते है और ज्ञान प्राप्त कर सकते है।

हर किसी के जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। मनुष्य को गुरु का महत्व समझना चाहिए और जीवन पर्यन्त उनका सम्मान करना चाहिए। उनके आशीर्वाद के बैगर मनुष्य अधूरे है। गुरु को प्रणाम किये बिना हम कोई शुभ कार्य शुरू नहीं करते है। उनके द्वारा दी गयी शिक्षा मनुष्य को जीवन भर काम आती है। उनके आशीर्वाद से कीमती चीज़, उनके शिष्य के लिए और कुछ हो ही नहीं सकती है। गुरु के प्रति हमेशा शिष्य के मन में श्रद्धा होनी चाहिए, तभी शिष्य अपने कार्य के बारीकियों को भली भाँती सीख सकते है।

गुरु का महत्व पर निबंध 1

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गुरु के महत्व पर निबंध : Guru ke Mahatva Per Nibandh Hindi Mein

गुरु के महत्व पर निबंध || Guru ke Mahatva Per Nibandh Hindi Mein

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गुरु के महत्व पर निबंध - 

गुरु का महत्व वर्तमान समय ही नहीं बल्कि पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है। गुरु को हमेशा भगवान का दर्जा दिया जाता है। हमें अपने माता-पिता के बाद जो कुछ भी सिखाया जाता है। वह सब गुरु की ही देन होती है। गुरु ही हमें सच्चाई और अच्छाई के मार्ग को बताते हैं, और सही राह पर लाते हैं। गुरु शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से हुई है गू और रू।

यदि इसके शाब्दिक अर्थ को देखें तो गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ उजाला होता है। अर्थात् गुरु शिष्यों के जीवन में अंधकार को दूर कर देते हैं और उनके जीवन को उजाले से भर देते हैं। गुरु अपने सभी शिष्यों के अंधकार रुपी जीवन को प्रकाश की ओर ले जाते हैं और उन्हें सच का मार्ग दिखाते हैं।

हर एक व्यक्ति के जीवन में गुरु की एक अहम भूमिका होती है और हर एक व्यक्ति गुरु के प्रति अपने आस्था और विश्वास के साथ अपने अपने सम्मान को प्रकट करते हैं। गुरु का मुख्य उद्देश्य अपने विद्यार्थियों को सफलता के मार्ग पर ले जाना होता है और उन्हें अच्छा ज्ञान के सागर से अवगत कराना होता है। गुरु अपने सभी विद्यार्थियों को हर एक तरह से अलग-अलग विषयों से संबंधित जानकारियां प्रदान करते हैं, जो उनके जीवन को हर एक पड़ाव पर सुरक्षित करती है। गुरु हमेशा अपने शिष्यों को अनुशासित विनम्र और बड़ों का सम्मान करना सिखाते हैं।

प्रस्तावना (Introduction) -

गुरु का महत्व उनके शिष्यों को भली-भांति पता होता। अगर गुरु नहीं तो शिष्य भी नहीं अर्थात् गुरु के बिना शिष्य का कोई अस्तित्व नहीं होता है। प्राचीन काल से गुरु और उनका आशीर्वाद भारतीय परंपरा और संस्कृति का अभिन्न अंग है। प्राचीन समय में गुरु अपनी शिक्षा गुरुकुल में दिया करते थे। गुरु से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात शिष्य उनके पैर स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेते थे। गुरु का स्थान माता-पिता से अधिक होता है। गुरु के बगैर शिष्यों का वजूद नहीं होता है।

जिंदगी के सही मार्ग का दर्शन छात्रों को उनके गुरुजी करवाते हैं। जीवन में छात्र सही गलत का फर्क गुरुजी के शिक्षा के बिना नहीं कर सकते हैं। शिष्यों के जिंदगी में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा होता है। गुरु जो भी फैसला लेते हैं उनके शिष्य उनका अनुकरण करते हैं। गुरु शिष्यों के मार्गदर्शक हैं और शिष्यों की जिंदगी में अहम भूमिका निभाते हैं।

गुरु शब्द की उत्पत्ति (Origin of the world Guru) -

दोस्तों गुरु शब्द की उत्पत्ति दूसरों को मिलाकर की गई है, जो कि गु और रु है। गु शब्द का अर्थ अंधकार होता है और रु शब्द का अर्थ रोशनी होता है, अर्थात गुरु शब्द का अर्थ ही अंधकार से निकालकर ज्ञान के तरफ लेकर जाना होता है। जिंदगी में मनुष्य को अंधकार रूपी परेशानियों से गुरु ज्ञान के उस प्रकाश की ओर ले कर जाते हैं जो शिष्यों के लिए बहुत ही अहम होता है।

हम सभी लोगों के पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं, परंतु यह हमें संस्कारित शिक्षा प्रदान करते हैं और दुनिया से लड़ने और दुनिया को समझने की शिक्षा हमें हमारे विद्यालय में शिक्षक प्रदान करते हैं।

गुरु की इज्जत करना है शिष्य का परम धर्म (Respecting the Guru is the supreme religion of the Disciple) -

गुरु का सम्मान शिष्यों को सदैव करना चाहिए। समाज में कुछ बुरे मनसा वाले लोग रहते हैं, वह अपने गुरु का सम्मान और आदर नहीं करते हैं। ऐसे लोग अपने जीवन में कभी भी उन्नति नहीं कर पाते हैं। गुरु का अपमान यानी शिक्षा का अपमान करना होता है। इसलिए बच्चों को बचपन से ही गुरु की इज्जत करना बड़े लोग यानी माता-पिता सिखाते हैं।

अगर हम दूसरे नजरिए से देखें तो जिंदगी में हम जो कुछ भी सीखते हैं वह सब गुरु के ही बदौलत होता है क्योंकि अगर गुरु नहीं तो ज्ञान नहीं और ज्ञान नहीं तो कुछ नहीं। ऐसे भागदौड़ भरी दुनिया में ज्ञान ही सब कुछ है जिसके पास ज्ञान वही विद्यमान है। क्योंकि आजकल की जो नौकरियां होती हैं उसमें केवल आपकी बुद्धि यानी कि ज्ञान का ही परिचय होता है।

गुरु से अधिक शक्तिशाली कोई नहीं (No one is more powerful than the Teacher) - 

दुनिया का सबसे मजबूत हिस्सा गुरु और उनकी शिक्षा होती है। गुरु के ज्ञान के बगैर शिष्यों का जीवन अधूरा है। बड़े-बड़े लोग भी अपने गुरुओं के समक्ष शीश झुकाकर उनका सम्मान करते हैं। गुरुओं के सत्कार में उनके शिष्य कोई भी कमी नहीं छोड़ते है। 

इसलिए कहा गया है कि बिन गुरु ज्ञान नहीं।

इसका अर्थ हुआ कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं है।

बिना गुरु के दुनिया का क्या होगा (What would happen to the word without a Guru) -

दोस्ती यारी गुरु नहीं होंगे, तो लोग शिक्षित नहीं हो पाएंगे और बिना शिक्षा के लोग अंधकार में भटकेगे। दोस्तों जैसे अंधेरा होने के बाद हम सभी लोग सामग्रियों को सिर्फ और सिर्फ टटोलते रहते हैं, ठीक उसी प्रकार बिना गुरु के जिंदगी में अधिकार छा जाएगा और हम ऐसे ही भटकते रहेंगे और दुनिया का कोई भी व्यक्ति काम नहीं आएगा।

यदि किसी भी शिष्य को उनके जीवन में गुरु नहीं मिला तो वह शिष्य अपने जीवन को दुखों से ही जिएगा और जीवन को सही रास्ते पर लाने के लिए गुरु की तलाश करते रहेंगे।

गुरु पूर्णिमा का महत्व (Importance of Guru Purnima) -

दोस्तों गुरु पूर्णिमा एक बहुत ही पावन दिवस है, क्योंकि आज के दिन गुरु को याद करके उनकी पूजा की जाती है। यह एक ऐसा दिन होता है जिस दिन सभी शिष्य अपने अपने गुरुओं को याद करते हैं और उनसे मिलकर अपने भविष्य के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। 

गुरु पूर्णिमा के दिन हर एक घर में गुरु नानक देव की पूजा की जाती है, क्योंकि गुरु नानक देव जी ने ही शिक्षा को उजागर किया था। इस दिन अपने भविष्य को बनाने के लिए कुछ लोग अपने गुरु से आशीर्वाद लेते हैं और साथ में उनको जो अच्छा लगता है दान कर्म का काम भी करते हैं जिससे वह पुण्य कमाते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion) - 

आज के इस निबंध को पढ़ने के बाद हम सभी लोगों को यह सीख मिलती है कि गुरु सभी मानव के लिए सर्वोपरि है, और हमें अपने गुरु की सेवा के लिए हमेशा कुछ न कुछ करना चाहिए। जहां तक हो सके। तथा आज हमने यह भी सीखा कि गुरु के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं है। गुरु है तो सब कुछ है।

जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध (Essay on importance of Guru in life) -

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हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। आज के आर्टिकल में हम गुरु के महत्व के बारे में पढेंगे।

हर व्यक्ति की सफलता के पीछे गुरु का हाथ होता है। गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है गुरु को उजाले का दीप माना जाता है गुरु के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा है गुरु के सहयोग से ही हर व्यक्ति सफल बनता है।

गुरु का होना अंधकार में देश के जैसे होते हैं। जो खुद जलकर दूसरों को उजागर करते हैं। माता के बाद दूसरा शिक्षक गुरु ही होते हैं गुरु से ली गई सच्चा संस्कार हमारी जीवन को आसान बना देती है।

गुरु ही वह व्यक्ति होता है जो खुद एक स्थान पर रहकर दूसरों को अपनी मंजिल तक पहुंचाता है गुरु हमेशा सभी को अच्छा ज्ञान देता है। गुरु सच्चे पथ प्रदर्शक होता है। हमारे जीवन में गुरु बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।

मनुष्य के लिए भगवान से भी बढ़कर गुरु को माना जाता है क्योंकि भगवान हमें जीवन प्रदान करता है। और गुरु हमें शिक्षा देकर इस जीवन को सही ढंग से जीना सिखाते हैं जो गुरु का मार्ग दर्शन करके चलता है। उसे जीवन में कभी ठोकरे नहीं खानी पड़ती हैं।

गुरु शब्द को देखा जाए तो गुरु दो शब्द के मेल से बनता है। किसने पहला शब्द जिसका अर्थ होता है। अंधकार और दूसरा शब्द रूप जिसका अर्थ होता है उजियारा यानी गुरु के नाम से ही हम पहचान कर सकते हैं कि यह हमें अंधकार से उजियारे की ओर ले जाने का कार्य करते हैं गुरु हमें अंधकार रूपी इस जीवन में प्रकाश रूपी ज्ञान देते हैं।

गुरु हमें शिक्षा के साथ-साथ संस्कारवान तथा अनुशासित विद्यार्थी बनाते हैं। व्यक्ति को जीवन में कुछ करना है तो उसे हर चीज के बारे में महसूस कराना होगा यह कार्य सिर्फ गुरु ही कर सकते हैं।

जो अपने शिष्य को प्रेम भाव के साथ समझा कर उन्हें अपने जीवन और भविष्य के लिए क्या उचित है और क्या आपके भविष्य को बर्बादी की ओर ले जाता है गुरु अनुभवी होते हैं वे अपने अनुभव का प्रयोग कर अपने चीजों को ज्ञान देते हैं।

गुरु विद्यालय में विद्यार्थियों को अनुशासन तथा शिक्षा देकर गुणवान व्यक्ति बनाता है। जिस व्यक्ति ने गुरु की कही गई बातों पर हमला किया और उन्हें गौर से जाना और सुधार किया है पर आज के जमाने में सबसे महान व्यक्ति है हमारे जीवन में हर परिस्थिति में गुरु की शिक्षा हमारे लिए महत्वपूर्ण होती है।

उदाहरण के तौर पर हम देखे हैं तो गुरु वह व्यक्ति होता है। जो हमें ज्ञान के पथ पर लाकर खड़ा करते हैं एक रुप से गुरु हमारे ड्राइवर होते हैं जो हमें सब कुछ सिखा कर ज्ञान से परिपूर्ण बनाते हैं।

शिक्षा देने वाला ही गुरु नहीं होता बल्कि गुरु वह होता है जो हमें अपनी आवश्यकता के अनुसार हमें सिखाता है। जैसे कोई क्रिकेटर बनाना चाहता है तो उसे क्रिकेट की ट्रेनिंग दिलाता है तथा हमें क्रिकेट खेलना सिखाता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है एक व्यक्ति के पास गुरु होता है तो वह व्यक्ति भाग्यशाली माना जाता है।

हमारे देश में गुरु को और भी ज्यादा महत्व दिया जाता है। हमारे यहां गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है। इसलिए कहते हैं "गुरुव देवो भव" हमारे देश में गुरु के सम्मान एवं महत्व को समझते हुए उनके चित्रकार को मनाते हुए।

हमारे देश में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है इस दिन लोग घरों में खुशियां मनाते हैं तथा अपने गुरुजनों को बुलाकर उनका मान सम्मान करते हैं। उन्हें भोजन कराते हैं। इस दिन विद्यार्थी गुरु की सेवा कर खुद को भाग्यशाली समझते हैं। और पुण्य की प्राप्ति करते हैं।

हमारी जीवन का यही बड़प्पन है कि हम बड़ों का आदर करें फोटो के साथ प्रेम पूर्वक करें तथा अतिथि का सम्मान करें इस प्रकार के हमारे जीवन के महत्वपूर्ण संस्कार तथा हमारे जीवन में सफलता प्राप्त करने का ज्ञान हमें गुरुद्वारा ही मिलता है। गुरु हमेशा अपने शिष्य को खुद से भी बेहतर बनाना चाहता है।

विद्यार्थियों का मानना होता है कि शिक्षक हमारे लिए पूरे साल हमारी सहायता करते हैं हमारे भविष्य की चिंता करते हैं क्यों ना हम एक दिन गुरु पूर्णिमा के दिन ही गुरु का आदर करें तथा उनके साथ प्रेम भाव प्रकट करें।

गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान सदुपयोग कर सभी को अंधकार आरोपी अज्ञान से दूर करते हुए छवि को शिक्षित बनाना है। ज्ञान ही एकमात्र ऐसी वस्तु है जिसे बांटने से वह कम नहीं होती बल्कि बढ़ती है इसलिए अपने ज्ञान को आगे से आगे शेयर करना चाहिए और सभी को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाना हमारा है।

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक गुरु का हाथ जरूर होता है। इस संसार में माता और गुरु दो ही ऐसे व्यक्ति होते हैं। जिनका आशीर्वाद हमारे जीवन को सफल बना सकता है हमें गुरु को हर चमन नमन करना चाहिए हर शुभ कार्य में गुरु की आज्ञा लेनी चाहिए।

• "वह व्यक्ति जो ज्ञान से जीवन आसान बनाएं।

वही हमारे लिए गुरु कह लाए।।"

• गुरु की महिमा अपरंपार, गुरु ही लगाएंगे नैया पार।

गुरु जग में करता उजाला, गुरु से ही शुरु होता सफल जीवन।

• गुरु वही जो शिखर पर ले जाए

गुरु बिन घोर अंधेरा और, गुरु ज्ञान बिना जग 

सूना सूना।

• गुरु ऋण से उऋण होने जैसा कुछ सोच नहीं पाता हूं।

आखिर में यही ख्याल गुरु बनकर ही रुक पाता हूं।

• गुरु सरीका नहीं कोई भाई , पढ़ ले इनसे मेरे भाई कभी कभी सोचा करता हूं।

• गुरु है ज्ञान है सार, अरे बच्चे के जीवन का आधार।"

• शिष्य को जो देते ज्ञान, इसी ज्ञान से शिष्य बनता महान।"

• "ज्ञान बांटने का काम जो करते शिक्षक, की जगह है भरते"।

• गुरु के राह दिखाते हैं चला खुद को ही पड़ता है।

• गुमनामी के अंधेरे में था पहचान बना दिया, दुनिया के गम से मुझे अनजान बना दिया उनकी ऐसी कृपा हुई गुरु ने मुझे एक अच्छा इंसान बना दिया।

• आपसे ही सीखा, आप से ही जाना, आपको ही बस हमने गुरु हे माना सीखा है सब कुछ बस आपसे हमने, शिक्षा का मतलब बस आपसे ही जाना।

• जीवन का पथ जहां से शुरू होता है वह रहा दिखाने वाला गुरु ही होता है।

• गुरु का महत्व कभी होगा ना कम भले कर ले कितनी भी उन्नति हम।

FAQ'S (Frequently Asked Questions)

प्रश्न 1. एक विद्यार्थी के जीवन में गुरु का क्या महत्व होता है?

उत्तर- दोस्तों गुरु हमारा सब कुछ होता है। अगर आप अपने गुरु को सच्चे दिल से मानते हो तो आपको किसी और को मानने की जरूरत है ही नहीं क्योंकि गुरु ही ईश्वर है। गुरु ही माता-पिता है। गुरु ही सब कुछ है। आज जो भी रिश्ते हैं। सब कुछ गुरु के रिश्ते के आगे पीछे हैं, क्योंकि गुरु ही हमें इन रिश्तों को निभाने के काबिल बनाता है इसलिए गुरु के बिना कुछ भी नहीं।

प्रश्न 2. गुरु क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर - ना केवल आपके गुरु आपको आध्यात्मिक यात्रा में मदद करेगे, बल्कि आपके गृहस्थ जीवन में भी आपका मार्गदर्शन भी करेगे। वह आपको यह तय करने के लिए अंतर्ज्ञान शक्ति देंगे। जो कि आपके जीवन के लिए अच्छा होगा। गुरु ना केवल भविष्य बनाते हैं बल्कि समाज के प्रति हो रहे कार्य के विषय में भी बताते हैं इसलिए गुरु हमारे लिए अति महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 3. जीवन में गुरु कौन होता है?

उत्तर - गुरु वह है, जो अपने मार्गदर्शन की शिक्षा के अनुसार आध्यात्मिक पथ पर चलकर विश्व मन और विश्व बुद्धि से ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं। आध्यात्मिक मार्ग दर्शक अथवा गुरु किसे कह सकते हैं और उनके लक्षण कौन से हैं।

प्रश्न 4. हम गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं इसका महत्व बताते हुए निबंध लिखें?

उत्तर - पहला हैं हिंदू धर्म,गुरु पूर्णिमा को भगवान शिव की पूजा के लिए मनाया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपने साथ अनुयायियों अथात् सप्तऋषियों को योग का ज्ञान दिया, और इस तरह एक गुरु बन गए। दूसरा है बौद्ध धर्म यह त्योहार बुद्ध को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने धर्म की स्थापना की आधार नींव रखी।

प्रश्न 5. गुरु की क्या विशेषता है?

उत्तर - केवल एक गुरु, जो ईश्वर को जानता है, दूसरों को सही ढंग से ईश्वर के प्रति शिक्षा दे सकता है। व्यक्ति को अपनी दिव्यता को पुनः पाने के लिए एक ऐसा ही सद्गुरु चाहिए। जो निष्ठापूर्वक सद्गुरु का अनुसरण करता है वह उसके समान हो जाता है, क्योंकि गुरु अपने शिष्य को अपने ही स्तर तक उठाने में सहायता करते हैं।

प्रश्न 6. जीवन का पहला गुरु कौन है?

उत्तर - जीवन का पहला गुरु हमारे माता और पिता होते हैं।

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गुरू का ज्ञान और शिष्य की ऊर्जा

हिंदी स्पीकिंग ट्री डेस्क

गुरु पूर्णिमा के दिन हम गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान करते हैं। महान स्वप्नदद्रष्टाओं की पीढ़ियों ने वेदांत-आत्म-प्रबंधन के विज्ञान-को जीवित रखा था। गुरु शब्द का अर्थ है ‘अधंकार को दूर करने वाला’ । गुरु अज्ञान को दूर करके हमें ज्ञान का प्रकाश देता है। वह ज्ञान जो हमें बतलाता है कि हम कौन हैं; विश्व से कैसे जुड़ें और कैसे सच्ची सफलता प्राप्त करें। सबसे अधिक महत्वपूर्ण कि कैसे विश्व से ऊपर उठ कर अनश्वर परमानंद के धाम पहुंचे। आज के दिन हम फिर से अपने को मानव संपूर्णता के प्रति अपने आप को समर्पित करते हैं।

वेदांत का अध्ययन करें,उसे अंगीकार करें और उसी के अनुसार जीयें ताकि हम उसे भविष्य की पीढ़ियों को हस्तातंरित कर सके। वेदांत हमे बाहर से राजसी बनाता है ओर भीतर से ऋषि। बिना ऋषि बने भौतिक सफलता भी हमारे हाथ नहीं लगती है। शिक्षक का ज्ञान और छात्र की ऊर्जा का एक सम्मिलन एक जीवंत प्रगतिशील समाज के निर्वाण की ओर ले जाता है।

आज छात्रों की प्रवृत्ति शिक्षक को कमतर आंकना है, आज का दिन उस संतुलन को पुन:स्थापित करने में सहायक होता है। यह जीवन के हर क्षेत्र में गुरु के महत्त्व पर बल देता है। एक खिलाड़ी की प्रतिभा एक कोच की विशेषज्ञता के अंतर्गत दिशा प्राप्त करती है।

समर्पित संरक्षक गुरु एक संगीतकार की प्रतिभा को तराशता है। अध्यात्म के मार्ग में एक खोजी के मस्तिष्क का अज्ञान गुरु का प्रबोध दूर करता है। गुरु-शिष्य का संबंध सर्वाधिक महत्व का है। गुरु के लिये गोविंद जैसी श्रद्धा होती है। ब्रह्म-विद् और ब्रह्मज्ञानी तथा ईश्वरीय साक्षात्कार में स्थित गुरु जो सूक्ष्मतम आध्यात्मिक संकल्पनाओं को प्रदान करने मे समर्थ हो, उसके मार्गदर्शन के बिना आध्यात्मिक विकास असंभव है। गुरु के प्रति संपूर्ण समर्पण – प्रपत्ति – एक छात्र की सर्व प्रथम योग्यता है

इसका मतलब अंधानुकरण नहीं है। खोजी को सिखाये गये सत्यों पर सवाल उठाना, छानबीन और विश्लेषण करना चाहिये ताकि वह अपने व्यक्तित्व को समझ सके, आत्मसात कर सके तथा उच्चतर क्षेत्र तक उसका रूपांतरण कर सके। इसे प्रश्न कहते हैं। अंतत: सेवा ही एक श्रेष्ठ छात्र की पहचान है। क्योंकि बिना शर्त सेवा ही छात्र को विन्रमता का महत्व सिखाती है जो उसे गुरु के ज्ञान को ग्रहण करने के अनुकूल बनाती है ।

गुरु पूर्णिमा का उल्लेख व्यास पूर्णिमा की तरह किया जाता है। व्यास ने वेदों को संहिताबद्ध किया था। जिस किसी भी स्थान से आध्यात्मिक या वैदिक ज्ञान प्रदान किया जाता है उसे वेदांत में व्यास के अद्वितीय योगदान को स्वीकार करने के लिये व्यासपीठ कहा जाता है।

सभी शिक्षक अपना स्थान ग्रहण करने के पहले व्यास के सामने नमन करते हैं। उनका सम्मान प्रथम गुरु की तरह किया जाता है, हालाँकि गुरु-शिष्य परंपरा का आरंभ उनके बहुत पहले हो चुका था। व्यास ऋषि पराशर और मछुहारिन सत्यवती के पुत्र और प्रसिद्ध ऋषि वशिष्ठ के पोते थे। वे ऋषि पिता के ज्ञान और मछुहारिन की व्यवहारिकता की साकार मूर्ति थे। जीवन में आगे बढ़ने के लिये दोनों को अपनाना अनिवार्य है। हिंदू कैलेण्डर के अनुसार व्यास का जन्म आषाढ़ की पूर्णिमा को हुआ था। ‘पूर्णिमा’ प्रकाश का प्रतीक है और व्यास पूर्णिमा आध्यात्मिक प्रबोधन की ओर संकेत करती है। व्यास महाकाव्य महाभारत के रचयिता थे।

महाभारत न केवल एक कला, काव्यात्मक श्रेष्ठता और मनोरंजन की कृति है, बल्कि जीवन के बारे में इसकी उपयोगी शिक्षाओं और भागवत गीता के अमर संदेश ने युगों से भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित किया है। ऑलिवर गोल्डस्मिथ के शब्दों मेँ “और वे निहारते रहे/और विस्मय बढ़ता गया/कि एक मस्तक में इतना सब ज्ञान कैसे सिमट गया”, इस बात की सटीक अभिव्यक्ति है कि व्यास इतने महान दृष्टा थे और गुरु पूर्णिमा के दिन हम उनका सम्मान करते हैं।

लेखक के बारे में

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लेखक हिंदी स्पीकिंग ट्री डेस्क

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Jeevan ka Mahatva “जीवन का महत्व” Hindi Essay 300 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

जीवन का महत्व, jeevan ka mahatva.

जीवन दो ढंग से जिया जा सकता है-औरों की सुनकर या अपनी सुनकर। जीवन या तो अनुकरण होता है या स्वस्फूर्त। या तो भीतर की रोशनी से कोई चलता है या उधार की। जो उधार जीता है, व्यर्थ जीता है क्योंकि जो उधार जीता है उसका जीवन थोथा होगा, मिथ्या होगा, ऊपर-ऊपर होगा, लिपा-पुता होगा। जो व्यक्ति स्वस्फूर्त जीवन जीता है, उसके जीवन में सत्य की संभावना है।

अनुकरण धर्म नहीं है, यद्यपि वही धर्म बनकर मनुष्य की छाती पर बैठ गया है। सारी पृथ्वी उन लोगों से भरी है, जो दूसरों का अनुकरण कर रहे हैं। उन्हें पता नहीं; सत्य क्या है? परमात्मा क्या है? न कभी पूछा, न कभी जिज्ञासा की। अन्वेषण के लिए श्रद्धा चाहिए, स्वयं पर श्रद्धा चाहिए।

धर्म के नाम पर हमें दूसरों पर श्रद्धा करने के लिए सिखाया जा रहा है। स्वयं पर श्रद्धा ही धर्म है। लेकिन स्वयं पर श्रद्धा अग्नि से गुजरने जैसी है। स्वयं पर श्रद्धा पाने के लिए पहला कदम नास्तिकता है, आस्तिकता नहीं।

दूसरे का अनुकरण सस्ता है, सुगम है। न कहीं जाना है, न कुछ खोजना है, न कुछ दाँव पर लगाना है। बस, बासी बातों का मान लेना है। भीड जो कहे उसको स्वीकार कर लेना है।

प्रभाव से जो जीता है. वह जीता ही नहीं है। सारी दुनिया करीब-करीब प्रभाव से जीती है। तुम जिसके प्रभाव में पड़ गए. उसके ही रंग में रंग जाते हो। तुम्हारी कोई निजता नहीं है। तुम्हारा अपने भीतर कोई स्वयं का बोध नहीं है कि तुम सोचो, विचारों, विमर्श करो, निर्णय लो।

कर्म तुम्हें बाँधेगा, अगर अनासक्त न हो। और कर्म अनासक्त तभी होता है जब ध्यान से आविर्भूत होता है और ध्यान अनुकरण नहीं है। ध्यान स्वभाव में ठहर जाने का नाम है। ध्यान स्वभाव में रम जाने का नाम है। तुम्हारा ज्ञान भी तभी तुम्हारा ज्ञान होगा, जब तुम्हारे भीतर से जगेगा। अगर किसी को स्वभाव की तलाश करनी हो तो जो दूसरों ने सिखाया हो, उस सबको विदा कर दो। उसमें कई बातें बड़ी हीरे-जवाहरात जैसी लगेगी, दिल करेगा कि बचा लें। मगर जो उधार है वह हीरा भी हो तो भी नकली है।

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गुरु का महत्व पर निबंध Guru ka mahatva essay in hindi

Guru ka mahatva essay in hindi.

दोस्तों कैसे हैं आप सभी,आज की हमारी पोस्ट है Guru ka mahatva essay in hindi दोस्तों जैसे की हम सभी जानते हैं कि आज के युग में गुरु का महत्व बहुत ज्यादा है,प्राचीन काल से ही हमारे देश में गुरु का महत्व रहा है क्योंकि गुरु ही हमारा सब कुछ होता है

Guru ka mahatva essay in hindi

कहते हैं कि मां बाप से बढ़कर गुरु होता है क्योंकि मां बाप हम को जन्म देते हैं लेकिन एक सच्चा गुरु हमको एक सही रास्ते पर चलने के लिए सलाह देता है और हमको सही और गलत दोनोंमें अंतर समझने के लिए तैयार करता है,गुरु का जीवन में बड़ा ही महत्व है जब कोईमां बाप अपने बच्चों को स्कूलों में दाखिला करवाते हैं तो उनको उम्मीद होती है अपने बच्चों से कि बड़े होकर कुछ अच्छा करेंगे,वह अपने बच्चों को एक गुरु के हवालेकर देते हैं क्योंकि गुरु ही उनको जीवन में कुछ करने लायक बनाता है.

ये भी पढें- गुरु का महत्व पर कविता Guru ka mahatva hindi kavita

प्राचीन काल से ही हमने देखा है की गुरु के महत्व को समझा जाता था पहले के जमाने में एक गुरु अपने आश्रम में अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे लेकिन प्राचीन काल से अभी तक बहुत सारे बदलाव आए हैं अब गुरु आश्रम से स्कूल-कॉलेज बन चुके हैं,आज के हर एक नवयुवक को गुरु के महत्व को समझना चाहिए और गुरु का बड़ा ही आदर करना चाहिए,दुनिया में अभी भी कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने गुरु को इज्जत नहीं देते, अपने गुरु को कुछ भी नहीं समझते हैं उन सभी को समझना होगा कि अगर आपको आगे बढ़ना है तो गुरु की इज्जत करना पड़ेगी और गुरु के महत्व को समझना होगा.

जब हम स्कूल में होते हैं तो हमारा गुरु हमें सही और गलत में अंतर करना सिखाता है ,हमको जिंदगी में हर एक परिस्थिति से लड़ने का सामना करने के लायक बनाता है और हर एक गुरु चाहता है कि मेरा शिष्य आगेबढ़े जिससे मेरा और भी नाम हो.दोस्तों हम सभी को गुरु के महत्व को समझने की जरूरत है आज बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं वह स्कूल कॉलेज में किसी न किसी गुरु से सीखते हैं और बड़े होकर अपनी अपनी इच्छा अनुसार कुछ ना कुछ करते हैं.

कोई लोगों की सेवा करने के लिए लोगों का उपचार करने के लिए डॉक्टर बनता कोई लोगों की सेवा करने के लिए एक व्यापारी बनता है तो कोई लोगों के मसले सोल्व करने के लिए वकील बनता है तो कोई कलेक्टर बनता है और उनमे से कोई अपने गुरु की तरह ही एक सच्चा गुरु बनता है,दोस्तों हम अपने गुरु से सीख कर जो भी बनते हैं और हम अपने जीवन में कुछ भी बन कर जो मान सम्मान और पैसा कमाते हैं वह सब कुछ हमारे गुरु की वजह से होता है,गुरु ही हमारा मार्गदर्शन करता है और हमें सब कुछ सिखाता है,हम सभी को गुरु के महत्व को समझने की जरूरत है.

हम सभी को अपने गुरु पर गर्व होना चाहिए आप जितने भी आगे बढ़े हो सिर्फ अपने गुरु के ही वजह से हो,हम सभी को कभी भी अपने आपको अपने गुरु से श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए और गुरु की जहां तक हो सेवा करना चाहिए क्योंकि आज हम जो भी हैं सिर्फ और सिर्फ गुरु के बदौलत हैं प्राचीन काल में हमने देखा है कि ऐसे ऐसे उदाहरण हमारे सामने आए हैं कि जिन का वर्णन करना भी मुश्किल है,बहुत सारे ऐसे लोग  हुए हैं जिन्होंने अपने गुरु के लिए या गुरु दक्षिणा के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया है.

महाभारत में जैसे की हम सभी जानते हैं कि एकलव्य द्रोणाचार्य से छुप-छुपकर धनुष विद्या सीखता था,वह छुप-छुपकर धनुष विद्या सीखते सीखते उसमें एकदम परफेक्ट हो गया था,वह बहुत ही खुश था.एक दिन जब वह गुरु के पास में गया तब गुरु को पता लगा कि एकलव्य दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर बन चुका है,गुरु ने एकलव्य का अंगूठा मांगा क्योंकि द्रोणाचार्य पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर अर्जुन को बनाने का वादा कर चुके थे इसलिए उन्होंने एकलव्य से गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांगा और एकलव्य ने गुरु दक्षिणा के रूप में अपना अंगूठा अपने गुरु को दे दिया क्योंकि एकलव्य के लिए धनुष विद्या अपने गुरु से बढ़कर नहीं थी.

उसने वह विद्या सिर्फ और सिर्फ अपने गुरु से सीखी थी,वह आज जो भी था सिर्फ और सिर्फ अपने गुरु की वजह से था वह अपने गुरु के महत्व को समझता था इसलिए उसने एक पल भी नहीं सोचा और अपना अंगूठा अपने गुरु को दे दिया है.दोस्तों गुरु हमारा सब कुछ होता है अगर आप अपने गुरु को सच्चे दिल से मानते हो तो आपको किसी और को मानने की जरूरत है ही नहीं क्योंकि गुरु ही ईश्वर है, गुरु ही माता पिता है, गुरु ही सब कुछ है.

आज जो भी रिश्ते हैं सब कुछ गुरु के रिश्ते के आगे पीछे हैं क्योंकि गुरु ही हमें इन रिश्तों को निभाने के काबिल बनाता है इसलिए गुरु के महत्व को समझकर अपने गुरु को इज्जत दीजिए,आज के जमाने में जैसे जैसे हमारी संस्कृति बदलती जा रही है उसी तरह से हमारे समाज में बहुत सारे बदलाव देखने को मिलते हैं,यहां तक ऐसा भी देखा गया है कि एक शिष्य अपने गुरु को अपशब्द भी कहता है,दोस्तों यह बिल्कुल सही नहीं है ऐसे लोगों का हमें समाज से बहिष्कार करना होगा क्योंकि जो गुरु का सम्मान नहीं कर सकता वह दुनिया में किसी का ना तो सम्मान कर सकता है और ना ही किसी को मान सकता है.

इसलिए Guru ka mahatva को समझिए और गुरु की सेवा कीजिए और अपने गुरु से हमेशा सीखते रहिए कभी भी अपने आपको अपने गुरु से श्रेष्ठ समझने की गलती मत कीजिए.

ये भी पढें- माता पिता का जीवन में महत्व पर निबंध

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jeevan me guru ka mahatva hindi essay

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Thnx for this essay. Really teacher is very important in our life.

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Heart touching essay

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विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व पर हिंदी निबंध

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व पर निबंध (Vidyarthi Jeevan Mein Anushasan Ka Mahatva Essay In Hindi)

आज   हम विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व पर निबंध (Vidyarthi Jeevan Mein Anushasan Ka Mahatva Essay In Hindi) लिखेंगे। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व पर लिखा हुआ यह निबंध   आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व पर निबंध (Vidyarthi Jeevan Mein Anushasan Ka Mahatva Essay In Hindi)

सभी के जीवन में अनुशासन का बहुत ही महत्व रहता है। अनुशासन का पालन किए बिना हम कभी भी एक सफल व्यक्ति नहीं बन सकते। और जब बात आती है विद्यार्थी जीवन की, तो अनुशासन का महत्व और भी कई गुना बढ़ जाता है।

अगर कोई विद्यार्थी समय का सदुपयोग कर खुद को अनुशासित रखता है, तो वह अवश्य ही सफलता की सीढ़ी को चढ़ता है। अनुशासित रहकर विद्यार्थी नियमों का पालन करना भी सीखते हैं। अनुशासन का पालन करके ही आगे चलकर एक बच्चा आदर्श नागरिक बनता है।

आदर्श नागरिक बनने के बाद ही वह समाज के लिए एक अच्छा उदाहरण बन सकता है। इतना ही नहीं आदर्श नागरिक बनकर वह अपने देश को भी कई प्रकार से लाभ पहुंचाता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम अनुशासन के महत्व को समझें और इसे अपने जीवन में लागू करें। बिना अनुशासन से हमारे जीवन का कोई महत्व नहीं रह जाएगा।

स्वयं को अनुशासित रखना बेहतरीन कलाओं में से एक है। अगर विद्यार्थी अपने जीवन में अनुशासन अपना लें तो वह अवश्य ही अपनी पढ़ाई को अच्छी तरह से पूरा कर पाएंगे और अच्छी तरह से शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे।

बिना अनुशासन के कोई भी विद्यार्थी अच्छे अंको से पास नहीं हो सकता है। उसे हमेशा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसलिए बहुत जरूरी होता है कि एक विद्यार्थी खुद को अनुशासित करके रखें।

अनुशासन का अर्थ

अनुशासन शब्द के अर्थ का अनुमान हम इसे लिखे जाने के तरीके से ही लगा सकते हैं। यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है, अनु + शासन। अनु का अर्थ होता हैं – पालन और शासन का अर्थ होता हैं – नियम। जिसका अर्थ होता हैं नियमों का पालन करना।

आसान शब्दों में कहें तो, अनुशासन का दूसरा अर्थ होता हैं, जो व्यक्ति अपने जीवन में नियमों का पालन करके अपना जीवन बिताता हैं उसे ‘अनुशासन’ कहा जाता हैं।

जीवन में अनुशासन का महत्व

जीवन में अनुशासन का महत्व उतना ही महत्वपूर्ण है, जिस प्रकार से चाय में चीनी का होना जरूरी होता है। बिना अनुशासन के मनुष्य पशु के समान हो जाता है। अनुशासन मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग है।

अनुशासन ही वह महत्वपूर्ण चारित्रिक विशेषता है, जो मनुष्य को पशुओं से अलग करती है। क्योंकि अनुशासन के बिना मनुष्य बिल्कुल जानवर की तरह हो जाता है। किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी रहता है कि हम अनुशासित रहकर उस काम के प्रति ध्यान लगाकर वह काम करें।

अगर हम बिना अनुशासन के उस काम को पूरा करने की कोशिश करेंगे, तो हम कभी भी वह कार्य पूरा नहीं कर पाएंगे। इसलिए हमें हमेशा यह कोशिश करनी चाहिए कि हम अनुशासन में रहें, क्योकि अनुशासन में रहकर ही हमें सफलता की प्राप्ति हो सकती है।

अगर हम अनुशासन में ना रहकर किसी काम को पूरा कर रहे हैं, तो हमें समझ लेना चाहिए कि हम अपनी असफलता की तैयारी कर रहे हैं।

अनुशासन और देश का विकास

किसी भी व्यक्ति के जीवन की शुरुआत सबसे पहले विद्यार्थी बनकर होती है। हम बचपन से ही 3 साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू कर देते हैं और यही बच्चे आगे चलकर देश के नागरिक बनते हैं। तो जो कुछ भी हम इन बच्चों को सिखाते हैं और पढ़ाते हैं वह हमारे देश के भविष्य में योगदान देता है।

इसलिए बहुत जरूरी होता है कि हम विद्यार्थियों को अनुशासन का महत्व अच्छी तरह से सिखाएं। जिससे कि वह आगे चलकर देश के आदर्श नागरिक बने। अनुशासित व्यक्ति सही पद पर पहुंचकर उसका सही उपयोग करते हैं। अनुशासित व्यक्ति कभी भी समय का दुरुपयोग नहीं करते।

उन्हें जो भी कार्य दिया जाए वह समय पर पूरा करने की कोशिश करते हैं। वह अपने अनुशासन की कला का इस्तेमाल करके समाज और देश को लाभ पहुंचाते हैं। वास्तव में जो व्यक्ति अनुशासन में रहता है, वहीं देश के विकास में योगदान कर सकता है।

वह व्यक्ति जिसे अनुशासन का महत्व ही ना मालूम हो वह देश के लिए ज्यादा कारगर साबित नहीं होता। यह कहना गलत नहीं होगा कि वास्तव में एक अनुशासन शील व्यक्ति ही देश को प्रगति की ओर अग्रसर करता है। अनुशासन युक्त विद्यार्थी जीवन में देश को आगे बढ़ाता है।

अनुशासन के बिना विद्यार्थी जीवन

अनुशासन के बिना विद्यार्थी जीवन की कल्पना करना काफी कठिन है। विद्यालय जाने का महत्वपूर्ण कारण यही होता है कि एक बच्चे के अंदर अनुशासन का पालन करने की इच्छा उत्पन्न की जाए। अनुशासन में रहे विद्यार्थी ही अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं। ऐसे विद्यार्थी हर शिक्षक की नजर में रहते हैं और हर वक्त प्रशंसा पाते हैं।

अगर किसी विद्यार्थी या बच्चे को अनुशासन के बारे में सिखाया जाए, तो उसे अपने जीवन की समस्याओं को हल करने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी। वहीं दूसरी और जो विद्यार्थी बिना अनुशासन के चलते हैं उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

जो विद्यार्थी अनुशासन हीन होता है उसे कोई पसंद नहीं करता। अनुशासन हीन व्यक्ति जीवन में ईर्ष्या, अहिंसा, असत्य, बड़ों से झूठ बोलना, बड़ों का आदर ना करना, अपने गुरु का आदर ना करना, गलत संगत में फसना आदि से ग्रसित हो जाता हैं।

इस प्रकार से अनुशासन हीन विद्यार्थी अपने जीवन को बर्बादी की राह पर ले जाते हैं। अनुशासन हीन व्यक्ति बुरे गुणों के आदी हो जाते हैं।

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। सभी अध्यापकों को अपने शिष्य को अनुशासन का महत्व जरूर सिखाना चाहिए। क्योंकि अगर एक बार किसी विद्यार्थी को अनुशासन में रहने की कला आ जाती है, तो उसका जीवन आसान हो जाता है और वह किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक कर लेता है।

इतना ही नहीं बल्कि घर पर माता-पिता को भी यह ध्यान देना चाहिए कि उनका बच्चा अनुशासन सीखें। उन्हें अपने बच्चे को अनुशासन युक्त व्यक्ति बनाने की कोशिश करनी चाहिए। उन्हें अच्छे अच्छे गुण और अनुशासन का महत्व बताना चाहिए।

अगर बच्चा अनुशासन में रहेगा तो ही एक सफल जीवन की ओर अग्रसर होगा और बुरी संगति से हमेशा बचकर रहेगा। वास्तव में अनुशासन ही विद्यार्थियों के जीवन में सबसे ज्यादा अहम भूमिका निभाता है।

इन्हे भी पढ़े :-

  • अनुशासन पर निबंध (Discipline Essay In Hindi)
  • जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध (Jeevan Me Guru Ka Mahatva Essay In Hindi)
  • विद्यार्थी जीवन पर निबंध (Student Life Essay In Hindi)
  • आदर्श विद्यार्थी पर निबंध (Ideal Student Essay In Hindi)

तो यह था विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व पर निबंध , आशा करता हूं कि विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Vidyarthi Jeevan Mein Anushasan Ka Mahatva)   आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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Hindi Essay on “Hamare Jeevan me Vanaspatiyo ka Mahatva” , ”हमारे जीवन में वनस्पतियों का महत्व” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

हमारे जीवन में वनस्पतियों का महत्व

Hamare Jeevan me Vanaspatiyo ka Mahatva

मनुष्य, पशु-पक्षी और यहां तक कि पेड़-पौधे भी हरियाली के आधार पर जीवित रहते हैं। पशु घास और पेड़ों के पत्ते खाते हैं। मनुश्य का आहार अन्न के दाने, शाक, फूल, फल और वनस्पतियां हैं। यदि ये सब खाने को न मिलें तो मानव का जीवित रहना संभव नहीं है। मांस खाने वाले प्राणी भी घास खाने वाले प्राणियों का ही मांस खाते हैं। इस प्रकार समस्त जीवन-चक्र पेड़-पौधों पर ही निर्भर है।

प्रारंभिक काल से ही मनुष्य का पेड़-पौधों के साथ बड़ा पवित्र संबंध रहा है। बरगद, पीपल, नीम, गूलर, आम आदि वृक्ष शुभ अवसरों पर पूजे जाते हैं। देवदार का वृक्ष भगवान शिव और पार्वती का वृक्ष माना जाता है। बेल, तुलसी, दूब, घास आदि पौधों को भारतीय संस्कृति में बहुत ही पवित्र माना गया है। भगवान बुद्ध को वृक्ष के नीचे ही ज्ञान ही प्राप्ति हुई थी। पेड़-पौधों के रूप में अनेक जड़ी-बूटियों का ज्ञान हमारे प्राचीन ऋषियों और आयुर्वेद के ज्ञाताओं को था, जिससे वे मानव के स्वास्थय की रक्षा करते थे।

पेड़-पौधों और वनों की उपयोगिता व महत्ता का ज्ञान मनुष्य को विज्ञान के विकास के साथ हुआ। विश्व के अधिकतर वैज्ञानिक अब एक स्वर में स्वीकार करते हैं कि पेड़-पौधों और वनों पर समस्त मानव-जाति का जीवन टिका हुआ है। ये प्रकृति के सबसे बड़े प्रहरी हैं, जिनके न रहने से संपूर्ण प्राणियों का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। इसी कारण विश्व के विकासशील देश वन-संपत्ति को बचाने और बढ़ाने के लिए हर तरह से कारगर उपाय कर रहे हैं। जहां पेड़ निरंतर घटते जाते हैं वहां का मौसम असंतुलित हो जाता है। इससे सर्दी, गरमी और वर्षा की कोई निश्चितता नहीं रहती।

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा वृक्ष दिन भर ऑक्सीजन देते रहते हैं और जीवनधारियों के द्वारा छोड़ी गई कार्बन डाईऑक्साइड को ग्रहण करते हैं। यानी अमृत दोड़ते हैं और विष ग्रहण करते हैं। इसलिए इन्हें ‘नीलकंठ’ की उपमा दी गई है। कारखानों के धुंए और अन्य विषैली गैसों को ये हमारी रक्षा के लिए पचाते रहते हैं।

पेड़-पौधे आकाश में उडऩे वाले बादलों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और उन्हें बरसने के लिए विवश कर देते हैं। जहां वृक्ष कम होते हैं वहां वर्षा भी कम होती है और वर्षा पर ही हरियाली निर्भर करती है।

पेड़ों की जड़ें जमीन में गहराई तक जाती हैं और वर्षा के प्रवाह में भी मिट्टी को जकड़े रहती हैं। जहां वृक्ष नहीं होते वहां भूमि की ऊपरवाली उपजाऊ परत वर्षा में बहकर नदी-नालों में चली जाती है। पेड़-पौधों के अभाव में ही समतल स्थान का पानी तेजी के साथ बहकर नदी-नालों में चला जाता है, जिससे भूमि पर्याप्त मात्रा में उसका अवशोषण नहीं कर पाती है।

कुओं, तालाबों, बावडिय़ों का पानी तभी अधिक दिनों तक टिकता है जब पेड़ों की जड़ें जमीन की ऊपरी सतह को गीता रखती है। पेड़-पौधों की कमी के कारण इनका जल गहराई में उतर जाता है और कुंए आदि सूख जाते हैं।

वृक्षों के पत्ते, फूल, डंठल टूट-टूटकर जमीन पर गिरते रहते हैं और मिट्टी में मिलकर सड़ जाते हैं तथा खाद बनकर भूमि की उर्वरा-शक्ति को बढ़ाते हैं। इस प्रकार वृक्ष अपने आस-पास उगनेवाले पेड़-पौधों की खाद-पानी देते रहते हैं। पक्षी पेड़ों पर वास करते हैं। पक्षी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को खा जाते हैं। वे अपने पंजों से फूलों के पराग इधर-उधर फैलाकर उनमें फल पैदा करते हैं। पक्षी दूर तक उड़ते हैं और अपने डैनों, पंजों एंव बीट द्वारा विभिन्न प्रकार के बीजों को दूर-दूर तक फैला देते हैं।

जंगली पशु पेड़ों की छाया में ही सर्दी, गरमी और बरसात की भयानक मार से राहत पाते हैं। जंगल के सभी जानवर वनों से ही अपना भोजन प्राप्त करते हैं।

नीम के पेड़ हम घर के आसपास अवश्य लगाते हैं, क्योंकि उसकी सभी पत्तियां, जड़, तना, छाल आदि उपयोगी औषध है। औषध के रूप में इनका विशेष महत्व है। दांत साफ करने के लिए नीम की दातुन ही सर्वोत्तम मानी जाती है। नीम की औषध के रूप में व्यापक प्रयोग होता है।

इसी प्रकार हिंदू घरों में तुलसी का पौधा अवश्य पाया जाता है। तुलसी का उपयोग विभिन्न प्रकार के रोगों की चिकित्सा के लिए किया जाता है। पेड़-पौधे से ही हमें हर प्रकार के फूल और स्वास्थ्यवद्र्धक फल मिलते हैं।

सुनने में चाहे अटपटा लगे, किंतु यह सत्य है कि हम भोजन के रूप में घास ही खाते हैं। गेहूं, चावल, जौ, बाजरा, मकई आदि सभी अनाज की घासें ही हैं। संसार में लगभग 10 हजार किस्म की घासें पाई जाती हैं। घासों के कारण मिट्टी का कटाव नहीं होता। ईख, जिससे हम चीनी व गुड़ प्राप्त करते हैं, भी एक प्रकार की घास ही है। वे सभी जानवर, जिनसे हमें दूध, घी, मांस, चमड़ा आदि प्राप्त होते हैं, मुख्य रूप से घास पर निर्भर रहते हैं।

जलाऊ लकड़ी के लिए हम पेड-पौधों पर ही आश्रित रहते हैं। आज ईंधन की समस्या जटिल हो गई हैं। पर्यावरणविदों का मत है कि पर्यावरण-संतुलन के लिए कुल भूभाग के क्षेत्र का 33 प्रतिशत भाग पेड़-पौधों से ढका होना चाहिए। आज इसकी कमी के अभाव में पानी की कमी हो गइ है। फसलों का पूरा उत्पादन नहीं हो पाता। कृषि-विस्तार के साथ हमें पेड़-पौधों के विस्तार करने के लिए आंदोलन चलाना चाहिए।

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